Karan Kumar

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लहू होना था इक रिश्ते का, सो वह हो गया उस दिन—! उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फ़र्श से उस शब, किसी ने काट लीं नब्ज़ें
रात पश्मीने की
by Gulzar
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