Karan Kumar

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आग कर लेती है तिनकों पे गुज़ारा लेकिन— आशियानों को निगलती है निवालों की तरह, आग को सब्ज़ हरी टहनियाँ अच्छी नहीं लगतीं, ढूंडती है, कि कहीं सूखे हुये जिस्म मिलें!
रात पश्मीने की
by Gulzar
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