रात भर ऐसे लड़ी जैसे कि दुश्मन हो मेरी! आग की लपटों से झुलसाया, कभी तीरों से छेदा, जिस्म पर दिखती हैं नाख़ुनों की मिर्चीली खरोंचें और सीने पे मेरे दाग़ी हुयी दाँतों की मोहरें, रात भर ऐसे लड़ी जैसे कि दुश्मन हो मेरी! भिनभनाहट भी नहीं सुबह से घर में उसकी, मेरे बच्चों में घिरी बैठी है, ममता से भरा शहद का छत्ता लेकर!!

