Karan Kumar

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इक याद बड़ी बीमार थी कल, कल सारी रात उसके माथे पर, बर्फ़ से ठंडे चाँद की पट्टी रख रख कर— इक इक बूँद दिलासा दे कर, अज़हद कोशिश की उसको ज़िन्दा रखने की! पौ फटने से पहले लेकिन— आख़री हिचकी लेकर वह ख़ामोश हुयी!!
रात पश्मीने की
by Gulzar
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