Pararth Dave

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कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला, कितने अरमानों को करके खाक बना पाया प्याला! पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा, कितने मन के महल ढहे, तब खड़ी हुई यह मधुशाला ! 133
मधुशाला
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