A R Kushwaha

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जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला; जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला; आँख चार हों जिसकी मेरे साक़ी से, दीवाना हो; पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला
मधुशाला
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