A R Kushwaha

73%
Flag icon
मिले न, पर, ललचा-ललचा क्यों आकुल करती है हाला, मिले न, पर, तरसा-तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला, हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई— ‘दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला
मधुशाला
Rate this book
Clear rating