सुनहरी जो मीरा – मोहित शर्मा (ज़हन)

सुनहरी जो मीरा – मोहित शर्मा (ज़हन)





वधू से साधू फली,


लाल जोड़े में दमक पीताम्बरी,


राणा जी की विषैली जलन धुली…


सुनहरी जो मीरा स्याह कान्हा में घुली।



श्याम से रंग की आस लिये पिये विष प्याले,


भला कलियुग, भले इसके बंदे,


जोगन को दुनियादारी सिखाने चले।



सावन वो पावन कर गयी,


जिसको डुबाती नदिया दो धारा हुयी,


सजदे मेंअकबर की नज़रे झुक गयी,


सुनहरी जो मीरा स्याह कान्हा में घुली।



जाने कैसा मोह, जाने कौन सहारा,


एक उसकी वीणा, दूजाजग सारा।



तानो की अगन यूँ सही,


काँटो की सेज पर सोयी,


रूखी सी ऋतुओं में निश्चल वो रही,


सुनहरी जो मीर...

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Published on July 25, 2014 01:56
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