ईमान आबरू सब बहुत कीमती थे बड़े सहेज के हमने संभाल के रखे थे फिर एक दिन उनका भी खरीददार मिल गया जो एक बार बिका तो बिकता ही चला गया पतथर की लकीर समझते थे हम जो एक बार कहा बस कह दिया फिर ज़माने ने जो सचचाई दिखाई लकीर पे छैनी रख पतथर ही तोड़ दिया बेआबरू होने की अब परवाह नहीं बेअदब भी जमाना हो चला है बस पयाला मिलता रहे मै से लबालब वैसे तो सब बस एक हसीन फ़साना है More
Published on May 25, 2018 19:12