माँ को माफ़ कर दो... (मोहित शर्मा ज़हन)

बीच सड़क पर चिलला रहे, ज़मीन पीट रहे, खुद को खुजा रहे और दिशाभरमित भिखारी से लगने वाले आदमी को भीड़ घेरे खड़ी थी। लोगो की आवाज़, गाड़ियों के हॉरन से उसे तकलीफ हो रही थी। शाम के धुंधलके में हर दिशा से आड़ी-तिरछी रौशनी की चमक जैसे उसकी आँखों को भेद रहीं थी। जिस कार ने उसे टककर मारी थी वो कबकी जा चुकी थी। कुछ सेकणडस में ही लोगो का सबर जवाब देने लगा। 
"अरे हटाओ इस पागल को !!" एक साहब अपनी गाडी से उतरे और घसीट कर घायल को किनारे ले आये। खरीददारी कर रिकशे से घर लौट रही रतना घायल वयकति के लकषण समझ रहीं...
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on May 29, 2016 07:59
No comments have been added yet.